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काल सर्प दोष पूजा कहा होती है

"कालसर्प दोष पूजा" ज्योतिष शास्त्र में विशेष धार्मिक अनुष्ठान के रूप में किया जाता है, जिसका उद्देश्य कालसर्प दोष से मुक्ति प्राप्त करना होता है। कालसर्प दोष का मतलब होता है कि जन्मकुंडली में सभी ग्रह किसी दोषी योग के बीच आते हैं, और इसका ज्योतिष द्वारा महत्वपूर्ण माना जाता है.

कालसर्प दोष पूजा विभिन्न प्राचीन ज्योतिष धार्मिक स्थलों पर की जा सकती है, जैसे कि मंदिर, तीर्थ स्थल, या ज्योतिषीय पंडितों के सुझाए जाने पर। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य दोष के निष्कासन और ग्रहों की शांति का प्राप्त करना होता है।

कालसर्प दोष पूजा की व्यवस्था ज्योतिषीय विशेषज्ञों या धार्मिक अध्यात्मिक आध्यात्मिक गुरुओं के मार्गदर्शन में की जाती है, और यह व्यक्ति की जन्मकुंडली के हिसाब से किया जाता है। कालसर्प दोष के प्रभाव को कम करने के लिए यह पूजा किया जाता है, और व्यक्ति के जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

श्री खेड़ापति माता मंदिर, निकास चौराहा, उज्जैन एक प्रमुख मंदिर है जहां कालसर्प दोष पूजा आमतौर पर की जाती है। उज्जैन एक महत्वपूर्ण धार्मिक नगर है और वहां कई प्रमुख मंदिर हैं, जहां पूजा और अनुष्ठान की व्यवस्था होती है। कालसर्प दोष निवारण के लिए ज्योतिषीय उपायों की आवश्यकता हो सकती है, और इसे विशेषज्ञ ज्योतिषीय गुरुओं के साथ या स्थानीय मंदिरों में किया जा सकता है।

यदि आप कालसर्प दोष पूजा करने की सोच रहे हैं, तो आपको मंदिर की स्थिति और पूजा की प्रक्रिया के बारे में स्थानीय पुजारियों से विवरण प्राप्त करना बेहद महत्वपूर्ण होगा। वे आपको इस पूजा के सम्पूर्ण प्रक्रिया और आवश्यक स्थानीय प्रयोजन के बारे में जानकारी देंगे और आपको अपने दौरे की योजना और विवरण प्रदान करेंगे।

आचार्य सागर जी:

आचार्य सागर जी एक अंतर्राष्ट्रीय सेलिब्रिटी ज्योतिषी हैं। पिछले 17 सालों से वह पूजा का आयोजन करते आ रहे हैं. उनके पास विभिन्न पूजाओं के लिए विशेष पंडितों की एक बड़ी टीम भी है। 

पंडित श्री सुनील तिवारी:

पंडित जी द्वारा कालसर्प दोष, मांगलिक दोष, अर्क विवा,ह कुंभ विवाह, वास्तु शांति, नवग्रह शांति, महामृत्युंजय दोष आदि कुंडली से संबंधित समस्त प्रकार के दोषों का निवारण पूर्ण विधि-विधान से संपन्न कराया जाता है। अभी तक देश विदेश के हजारों व्यक्ति लाभान्वित होकर सुखमय जीवन भगवान महाकाल के आशीर्वाद से व्यतीत कर रहे हैं।

जय श्री महाकाल जी ।